योगा के आंतरिक और बाहरी दोनों अर्थ हैं- ब्रह्म कुमारी अनामिका बहन
सुबह हो या हो शाम ,रोज कीजिए योग ।
निकट नहीं आयेगा तन -मन में कभी भी कोई रोग।
कर्नलगंज/परसपुर, गोण्डा। देश में 75 वें आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में बृहद रूप से आयोजित अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस कार्यक्रम पर प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्व विद्यालय परसपुर सेवा केन्द्र में कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें तमाम लोगों ने शामिल होकर अष्टांगयोग के आठों प्रकार को जाना और योगा करने से होने वाले लाभों को भी समझा।कार्यक्रम में सेवा केन्द्र प्रभारी
ब्रह्माकुमारी अनामिका बहन ने उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए बताया कि योग के प्रकार आठ हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं जैसे:- यम,नियम, आशन,प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। योगा (प्राणायाम) के विधिपूर्वक और
नियमपूर्वक अभ्यास करने से हमारे शरीर में रासायनिक
(हार्मोनल चेंजेज) परिवर्तन होते हैं। हमारी अंतःस्रावी ग्रंथियां संतुलित रूप से सक्रिय रहती हैं।हमारा शरीर रासायनिक प्रक्रियाओं के आधार से ही काम करता है। मन भी रासायनिक प्रक्रियाओं से निरंतर प्रभावित होता है। रासायनिक (हार्मोन्स) परिवर्तनों से हमारे तन एवं मन में नई ऊर्जा का संचार होने से सकारात्मक तथा सृजनात्मक प्रभाव पड़ता है। प्राचीन काल के ऋषि मुनि वैज्ञानिक थे। उन्होंने योगा के विज्ञान को खोज निकाला और
इसके प्रचार प्रसार की महत्ता पर बल दिया। शरीर में रासायनिक (हार्मोनल) प्रक्रियाओं के द्वारा रासायनिक (हार्मोन्स) परिवर्तन होने से नई ऊर्जा के संचार होने का तथ्य वैज्ञानिक आधार रखता है। नई और संतुलित ऊर्जा का प्रभाव शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बेहतरीन प्रभाव पड़ने का भी वैज्ञानिक आधार है। ध्यान रहे :- योगा (प्राणायाम) का प्रतिदिन अभ्यास करने से पहले प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं की शारीरिक आयु, स्वयं के शारीरिक स्वास्थ्य की वर्तमान स्थिति, उचित समय, उचित आहार आदि सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए।योगाभ्यास को कभी भी अनगढ़ तरीके से नहीं करना चाहिए, अन्यथा हानि होने की भी संभावना रहती है। यदि सभी बातों का ध्यान रख कर योगाभ्यास किया जाए तो अपार लाभ ही लाभ हैं। योगाभ्यास यदि विधिवत् करें तो तन और मन का स्वास्थ्य आपका अपना है। यदि तन और मन स्वस्थ्य रहता है तो अध्यात्मिक स्वास्थ्य को बढ़ाने में बहुत सहजता रहती है। क्योंकि यह तीनों की ऊर्जाएं परस्पर आपस में जुड़ी हुईं होती हैं
जो परस्पर एक दूसरे को प्रभावित भी करती हैं। योगा के आंतरिक और बाहरी दोनों अर्थ हैं। योगा (प्राणायाम) के विधिपूर्वक और नियम पूर्वक अभ्यास करने से हमारे शरीर में रासायनिक (हार्मोन्स) परिवर्तन होते हैं। हमारी अंतःस्रावी ग्रंथियां संतुलित रूप से सक्रिय रहती हैं। हमारा शरीर रासायनिक प्रक्रियाओं के आधार से ही काम करता है। मन भी रासायनिक प्रक्रियाओं से निरंतर प्रभावित होता है। रासायनिक परिवर्तनों से हमारे तन व मन में नई ऊर्जा का संचार हो सकारात्मक सृजनात्मक प्रभाव पड़ता है।राजयोग (मेडिटेशन) MEDITATION दुनिया में हर प्रकार की क्रांति हो रही है।विकास की नई-नई ऊंचाइयों पर आज मानव पहुंच रहा है,टेक्नोलॉजी एक प्रकार से मनुष्य जीवन का हिस्सा बन चुकी है और सब तेज गति से बढ़ रहा है। लेकिन कहीं ऐसा ना हो कि इंसान वहीं का वहीं रह जाए.. अगर इंसान वहीं का वहीं रह गया और विश्व में यह सारी व्यवस्थाएं विकसित हो गई तो यह मिस मैच भी मानव जाति के लिए संकट का कारण बन सकता है। इसलिए आवश्यक है कि मानव का भी आंतरिक विकास होना चाहिए,उत्कर्ष होना चाहिए। ताकि भारत को पुनः विश्व का गुरु बना सकें, विश्व गुरु का दर्जा दिला सकें। ज्यादातर लोगों के दिमाग में योग यानी
एक प्रकार से अंग मर्दन का कार्यक्रम है,पर मैं समझती हूं यह सोंचना सबसे बड़ी गलती है। योग अंग उपांग मर्दन का काम नहीं है।अगर यही होता तो सर्कस में काम करने वाले युवक युवती भी योगी कहे जाते और इसीलिए सिर्फ शरीर को कितना हम लचीला बनाते हैं,कितना मोड़ देते हैं” वह योग नहीं है। हमनें कभी-कभी देखा है कि संगीत का बड़ा जलसा होता है, संगीत जलसे के प्रारंभ में जो वाद्य बजाने वाले लोग हैं व अपने- अपने तरीके से ढोल आदि वाद्य यंत्र को पीट-पाट करते रहते हैं। जब तक उसकी आवाज में बुलंदी नहीं आ जाती,कोई तार ठीक करता है
कोई तबला ठीक करता है तो कोई ढोल ठीक कर रहा होता है। जबकि हार्मोनियम वाद्यक अपनी हार्मोनियम की ट्यूनिंग सही करने में लग जाता है। ऐसा करने में स्वाभाविक तौर से पांच-सात मिनट तो लग ही जाता है। अब जो दर्शक व श्रोता लोग वहां बैठे हुए होते हैं वह सोंचते हैं कि आखिर शुरू कब करेंगे ? तो जैसे जिस प्रकार संगीत शुरू होने के पहले यह जो ताल ठीक करने के लिए ठोक-ठांक का कार्यक्रम होता है और बाद में एक सुरीला संगीत निकलता है वैसे यह ताल मिलाने के लिए ठोंक वाला कार्यक्रम पूरे संगीत समारोह में बहुत छोटे समय का होता है। मगर सबसे महत्वपूर्ण होता है।ऐसे ही योग व योगा का यह आसन भी पूरी योग व्यवस्था में उतना ही मनुष्य जीवन का हिस्सा है। बाकी तो यात्रा बड़ी लंबी होती है। इसीलिए अभी इस यात्रा को ही जानना और पहचानना अति आवश्यक है। योगा प्रचलित रूप में तो आज वह महर्षि पतंजलि का अष्टांग राजयोग है जिसमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, समाधि इन आठ स्तरों का वर्णन है।जबकि आज हम केवल आसन प्राणायाम को ही लेकर चल रहे हैं । लेकिन हमें अष्टांग योग के हर स्टेप को सत्य अहिंसा ब्रम्हचर्य को फॉलो करना होगा। यदि नहीं किया तो भारत को विश्व गुरु बनाने का सपना अधूरा रह जाएगा। उन्होंने कहा कि हे भारत वासियों आज संकल्प लो कि आज स्वयं को और अपनी पूरी फैमिली को योगी जीवन जीना सिखाएं, इसमें ही आपका और आपके परिवार का कल्याण है।