बालश्रम कानून की उड़ रही धज्जियां अधिकारी बने हुए हैं बेखर

बालश्रम कानून की उड़ रही धज्जियां अधिकारी बने हुए हैं बेखर

रंजीत तिवारी

गोंडा : जिले में श्रम विभाग कागजों में चल रहा है। विभाग द्वारा की जाने वाली कार्यवाहियां खानापूर्ति तक सीमित रहने से जिले में श्रम कानून की खुले आम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। विभागीय स्तर पर आज तक जिले में किसी भी ऐसी कार्यवाही को अंजाम नहीं दिया गया है जिसे विभागीय उपलब्धि के तौर पर गिना जा सके। जबकि पूरे जिले में श्रम विभाग की उदासीनता के चलते बाल मजदूरी चरम पर है वहीं जिम्मेदार फोटो खिंचवा कर इतिश्री कर रहे हैं। पहले तो आपको ईंट भट्टों, होटलों, कारखानों सहित अनेक जगहों पर खुले आम बच्चों से मजदूरी कराई जा रही है। अब तो हद तब हो गई सरकारी वन विभाग कि नर्सरी के पौधशाला में भी बच्चों से काम कराया जा रहा है। जिले में श्रम कानून का खुला उल्लंघन हो रहा है और संबंधित विभाग के अधिकारी, कर्मचारी तमाशबीन बने हुए हैं।

ऑफिस में बैठे निभा रहे जिम्मेदारी

श्रम कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी श्रम विभाग के कर्मचारियों को दी गई है परन्तु कार्यवाही के नाम पर फोटो खिंचवाकर खाना पूर्ति ऑफिस में बैठ कर पूरी कर रहे हैं। श्रम अधिकारियों द्वारा जब शासन से दबाव पड़ता है तब श्रम अधिकारी फील्ड में जाते हैं। इसके अलावा केवल श्रम विभाग के अधिकारी दिखावा करने का कार्य करते देखे जा सकते है।जिले में श्रम विभाग का मुख्यालय होने से अधिकारी,कर्मचारियों के मजे हो गए हैं। जिला मुख्यालय का बहाना बनाकर विभागीय अमला बिना काम के पगार पा रहा है। जिला प्रशासन भी श्रम विभाग पर नकेल कसने में नाकाम साबित हो रहा है।

जानकारी लेना नहीं आसान

श्रम विभाग द्वारा कभी भी विभागीय स्तर पर की जाने वाली कार्यवाही के संबंध में जानकारी नहीं दी जाती। जब भी कार्यवाही को लेकर अधिकारी, कर्मचारियों से चर्चा की जाती है तो वह एक दूसरे पर टाल मटोली कर जानकारी देने में आनाकानी करने लगते हैं। विभागीय अधिकारी का रटा रटाया जबाव यही होता है।

बाल श्रमिकों का हो रहा शोषण

श्रम विभाग की उदासीनता से जिले में बाल श्रमिकों का जमकर शोषण हो रहा है। श्रम कानून को ताक में रख कर मामूली मजदूरी देकर बाल श्रमिकों से दिन रात काम कराया जा रहा है। जिले मुख्यालय पर ही छोटे-छोटे बच्चों को होटलों, ढाबों, गैरिज, ईंट भट्टों और ठेकेदारों के पास काम करते हुए आसानी से देखा जा सकता है। जिन बच्चों की उम्र पढ़ने लिखने की है वह चन्द रुपयों की खातिर हाड़तोड़ मेहनत करने को मजबूर हैं। जिला मुख्यालय पर ही श्रम कानून का पालन नहीं हो रहा है जबकि नया सवेरा नामक कार्यक्रम में लाखों का खर्च सरकार के द्वारा किया गया है जिसका समापन हाल ही मे जिम्मेदारो को प्रशस्ति पत्र देकर वाहवाही लूट रहा है। लोगों के मुताबिक श्रम विभाग के अधिकारी, कर्मचारियों को भी इसकी पूरी जानकारी है लेकिन उन्होंने भी चुप्पी साध रखी है। यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने सांठ गांठ कर लोगों को श्रम कानून का उल्लंघन करने की खुली छूट दे दी है, उसी का नतीजा यह निकल रहा है कि जिले में श्रम कानून के पालन संबंधी दावे खोखले साबित हो रहे हैं। अक्सर देखने में आता है कि जब भी श्रमिकों के शोषण की शिकायतें होती हैं तो विभाग कार्यवाही करने के बजाए मामले की लीपापोती में जुट जाता है। जिन स्थानों पर मजदूरों का शोषण हो रहा है वहां विभागीय अधिकारियों का महीना बंधा हुआ है जिससे वह कभी भी उन पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं करते। जिले में ही तमाम औद्योगिक इकाईयों में श्रमिकों का जमकर शोषण हो रहा है। कई बार मजदूर संगठनों ने इसको लेकर आवाज भी उठाई लेकिन श्रम विभाग के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।

इनका कहना है

पूरे जिले में श्रम कानून का मखौल उड़ाया जा रहा है। श्रम विभाग द्वारा उदासीनता बरती जाने से जिले में बाल मजदूरी दिनों-दिन बढ़ रही है, वहीं दबंगों द्वारा मजदूरों को बंधक बना कर उनसे मजदूरी कराई जा रही है। ईट भट्टो पर बिना मानक अनुसार मजदूरी का चलन बदस्तूर जारी है।

भारतीय श्रमिक कामगार कर्मचारी महासंघ राष्ट्रीय मंत्री मनीष मिश्रा (भाजपा प्रणित ) मनीष मिश्रा

श्रम विभाग की जिले में कहीं कोई गतिविधि देखने को नहीं मिलती। श्रम विभाग के अधिकारी, कर्मचारियों को सिर्फ हफ्ता वसूली से मतलब रहता है। श्रम कानून की जिले में धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और विभाग मौन साधे हुए है।

राघवेंद्र मिश्रा , स्थानीय नागरिक

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भारतीय श्रमिक कामगार कर्मचारी महासंघ राष्ट्रीय मंत्री मनीष मिश्रा (भाजपा प्रणित ) मनीष मिश्रा

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