होटल, ढाबों व ईट भट्टों पर बाल श्रम करते हुए देखे जा सकते हैं किशोर
बहसूमा। लोग कहते हैं कि भारत देश का हर बच्चा इस देश का भविष्य है। लेकिन जिस उम्र में बच्चों के हाथों में कलम व कापियां होनी चाहिए उस उम्र में इन मासूम बच्चों के हाथों में होटलों के झूठे बर्तन धोने के लिए दे दे जाते हैं। छोटे मासूम बच्चों को स्कूल जाना चाहिए उस उम्र में है बच्चे मजदूरी करते देखे जा रहे हैं कस्बे में बाल श्रमिक पेट पालने के लिए लघु उद्योगपतियों के व्यवसायियों के इशारे पर नाच रहे हैं। इन बाल श्रमिकों की पारिवारिक व आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण अल्प आयु में रोजी-रोटी के चक्कर में खतरनाक कार्यो में जुट जाते है। अमीरों की आय का साधन बने बाल श्रमिकों का भविष्य व जीवन अंधकारमय होता जा रहा है। वही सरकार मात्र यह दिखावा कर रही है कि बाल श्रमिकों के लिए नई-नई योजनाएं चलाई व बनाई जा रही हैं। किंतु ये खोखली बातें ही साबित हो रही है इन मासूम बाल श्रमिकों के पास अशिक्षा गरीबी असहाय की स्थिति में प्रतिष्ठानों व जानलेवा उद्योगों से जुड़ने के अलावा और कोई चारा नहीं है। श्रम विभाग की नकारात्मक कार्यवाही के चलते बाल श्रम उन्मूलन फ्लॉप साबित हो रहा है। होटलों,ईंट भटठो व अन्य कल कारखानों में यदि छापे डाले जाए तो बाल श्रमिकों की तादाद के बारे में जानकारी मिल सकती है। हजारों बाल श्रमिक प्रतिदिन अपनी मौत को आमंत्रित करते हुए आर्थिक परिवारिक तंगी के कारण इन व्यवसायो व अन्य उद्योगों से जुड़ना इनकी मजबूरी है इन जगहों पर बाल श्रमिकों से 12 से 14 घंटे कार्य लिया जाता है जबकि इस कार्य के बदले एक हजार से डेढ़ हजार रुपए ही दिए जाते हैं। जो आज की महंगाई को देखते हुए बेहद कम है यदि सरकार द्वारा बाल श्रम उन्मूलन के प्रति कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो आने वाला समय इन बाल श्रमिकों का भविष्य पूरी तरह अंधकार में हो जाएगा।