उपन्यासों के महान सम्राट थे मुंशी प्रेमचन्द – बिजेन्द्र सिंह
बागपत, उत्तर प्रदेश। विवेक जैन।
देश के महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द को उनकी पुण्यतिथि पर जनपदभर में याद किया गया। स्कूलों मे विद्यार्थियों को मुंशी प्रेमचन्द और उनके साहित्य के बारे में बताया गया। उनको विनम्र श्रद्धांजली अर्पित की गयी और उनके जीवन से प्रेरणा लेने की बात कही गयी। पैरामाउन्ट पब्लिक स्कूल अग्रवाल मण्ड़ी के प्रबन्धक एवं प्रमुख समाज सेवी बिजेन्द्र सिंह ने बताया कि मुंशी प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई वर्ष 1880 को गांव लमही वाराणसी उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपतराय श्रीवास्तव था। मुंशी प्रेमचन्द एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, जिम्मेदार सम्पादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बिजेन्द्र सिंह ने बताया कि प्रेमचन्द ने अपने जीवन में 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल पुस्तकें, हजारों लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की। बिजेन्द्र सिंह ने बताया कि प्रेमचन्द ने अपनी रचनाओं में जनसाधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया है। बताया कि प्रेमचन्द का साहित्य इतना अधिक प्रभावशाली है कि वर्तमान में उनकी रचनाओं का विश्व की अनेकों भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और प्रेमचन्द्र जी के साहित्य को पढ़ने वाले पाठकों की संख्या करोड़ो में है। मुंशी प्रेमचन्द उपन्यासों के महान सम्राट थे। बिजेन्द्र सिंह ने बताया कि मुंशी प्रेमचन्द की प्रारम्भिक आर्थिक स्थिति अच्छी नही थी। विपरित परिस्थितियों के बाबजूद उन्होंने हार नही मानी और आगे बढ़ते गये। 8 अक्टूबर वर्ष 1936 को बीमारी के चलते उनकी मृत्यु हो गयी। कहा कि मुंशी प्रेमचन्द जैसी शख्सियतें सदियों में कभी कभार ही जन्म लेती है, उनका सम्पूर्ण जीवन अनुकरणीय है। सभी को उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।