बहराइच – बिन दुल्हे की बारात
एंकर – आपने बारातें तो बहुत देखी और सुनी होंगी लेकिन बिना दुल्हे की बारात न देखी होगी न सुनी होगी /
पर यह सच है बहराइच में सैय्यद सलार मसूद गाजी की दरगाह पर हर साल ये अनोखी बारात आती है /
सबसे अनोखी बात यह देखने को मिलती है की इस बारात में न दूल्हा होता है न दुल्हन लेकिन बारात में हजारों बाराती डोली और दहेज़ के साथ शामिल रहते हैं /
इस अनोखी बारात की परम्परा एक हजार सत्रह साल पुरानी है
वी-ओ-१- रास्ट्रीय एकता के प्रतीक सैय्यद सलार मसूद गाजी की दरगाह पर जेठ माह में मेला लगता है जो एक माह तक चलता है
इस मेले की खास बात यह है की यहाँ हिन्दू संप्रदाय के अस्सी प्रतिसत श्रद्धालु शिरकत करते हैं यहाँ सभी धर्मो के लोग अपनी अपनी तरह से अकीदत पेश करते हैं कोई त्रिशूल गाड़कर गाजी बाबा की पूजा अर्चना करता है तो कोई फातिया करके अकीदत करता है /
किसी पर किसी तरह की पाबन्दी या रोक नहीं है /
आम तौर पर किसी दरगाह पर नाच गाने ढोल तमाशे गोले पटाखे दागने की इज़ाज़त नहीं होती लेकिन यहाँ गाजी के दीवाने एक माह तक झूमते नाचते गाते गोला पटाखे दागते देखे जाते हैं /
बारात लाने की परम्परा मुराद पूरी होने से जुडी है जिसकी मुराद पूरी होती है वो बारात लेकर आता है बारात को लेकर यहां एक अलग तरह की मान्यता है बताया जाता है कि गाजी बाबा की शादी नहीं हुई थी /
बाराबंकी के रुदौली शरीफ के नबाब रुकनुद्दीन की बेटी जोहरा बीबी जो दोनों आँखों से अंधी थी उनकी माँ ने अपनी बेटी की आँखों की रोशनी के लिए गाजी दरगाह में मिन्नत मांगी / आलम ये हुआ कि इस मिन्नत के बाद जोहरा की आँखों में रौशनी आ गयी/
आंखों में रोशनी आने के बाद जोहरा बीबी इस दरगाह पर ही रह गयी अपने घर नहीं गयी/
चूंकि जोहरा बीबी की शादी तय जो चुकी थी जब आंखों में रोशनी आने के बाद जोहरा बीबी दरगाह छोड़ कर जाने से इनकार कर दिया तो परिजन उनकी सादी के लिए रखा दहेज़ भी लेकर यहीं पहुंचा गए तभी से मुराद पूरी होने पर बारात लाने की परम्परा सुरु हुई /
वी- ओ- हजार सालों में दुनिया ने न जाने कितने रूप बदले हों लेकिन यहाँ की परम्परा /आस्था और विस्वाश कभी कम नहीं हुई यही वजह है कि मन्नतें पूरी होने पर इस गाजी और गौतम की सरजमी पर इस मेले के दौरान हज़ारों की संख्या में जायरीन बिन दूल्हे की बारात लेकर आते हैं
बाइट – शमशाद अहमद ( अध्यक्ष मेला कमेटी)