दूल्हा न दुल्हन, बाराती होते हैं हजारों जायरीन
ब्यूरो रिपोर्ट दुर्गेश जायसवाल
गोंडा। सैय्यद सालार रज्जब अली हठीले शाह गाजी की दरगाह पर लगने वाले ज्येष्ठ मेले की शुरुआत माह के प्रथम रविवार से होती है। इस दिन विभिन्न प्रदेशों व जिलों से करीब 250 बरात पहुंचती हैं। गाजी मियां की शादी में दूल्हा एवं दुल्हन कोई नहीं होता, लेकिन 50 हजार से 60 हजार बराती बाबा की मजार पर फूल-फल व मेवे की डलिया पेश करते हुए पूरी रात जियारत करते हैं।
आगामी 22 मई को मुख्य मेला होगा। ज्येष्ठ माह के पहले रविवार को होने वाले मुख्य मेले के दिन गाजी बाबा की बरात मुख्य आकर्षण का केंद्र होती है। इसमें शामिल होने के लिए पूर्वांचल के देवरिया, बस्ती, गोरखपुर, अंबेडकरनगर, अयोध्या, रायबरेली, बलिया के साथ बिहार प्रदेश के विभिन्न जिलों से बरात आती हैं। इस दिन पड़ोसी राष्ट्र नेपाल व मुंबई, दिल्ली, कोलकाता समेत अन्य प्रदेशों से भी जायरीन पहुंचते हैं।
दरगाह के अभिलेख में करीब 50 बरात ही पंजीकृत हैं, लेकिन गैर पंजीकृत बरात के आने से इनकी संख्या 250 के लगभग पहुंच जाती है। पलंग-पीढ़ी, चादर, फल, मेवा और फूल की डलिया लेकर बराती नाचते-गाते दरगाह शरीफ पहुंचते हैं। यहां दरगाह प्रबंध समिति बरात की अगवानी करती है। इसके बाद सभी बरातें गाजी की दरगाह पर जियारत करती हैं।
गुस्ल के साथ होती है दुआ
दरगाह प्रबंध समिति के सदस्य हाफिज मोहम्मद सगीर बताते हैं कि दरगाह पर मुख्य मेले के दिन सुबह से तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। गुलाब जल, संदल, केवड़ा आदि का गुस्ल होता है। चादरपोशी के बाद अमन-चैन व जायरीन की खुशहाली व सुरक्षित वापसी की दुआ की जाती है।
चौथी की भी है परंपरा
मुख्य मेले के दिन बरात के वापस लौटने के बाद एक माह तक मेला चलता है। प्रबंध समिति के अध्यक्ष मोहम्मद हारुन ने बताया कि चौथी की भी परंपरा है। दूसरे से चौथे रविवार तक चौथी पड़ती है। शनिवार को बड़ी संख्या में जायरीन पहुंचते हैं। रविवार को जियारत करने के बाद बहराइच को जाते हैं।