गंभीरवा बाजार (बहराइच) ।

गंभीरवा बाजार (बहराइच) । विश्व विख्यात परम सन्त बाबा जयगुरुदेव के इकलौते वारिस बाबा पंकज महाराज की 108 दिवसीय शाकाहार सदाचार मद्यनिषेध आध्यात्मिक वैचारिक जन-जागरण यात्रा आज सायंकाल अपने सौवें पड़ाव धर्मनपुर पतुरिया चक, ब्लाक- चित्तौरा पहुँची। लम्बी लाइनें लगाकर माताओं, बहनों, बच्चियों ने कलश दीपों से सुसज्जित परिधानों में भव्य स्वागत किया। पुष्प वर्षा और बाजे-गाजे के साथ जयगुरुदेव ध्वज को लेकर भावभीना क्षेत्रीय जन-अभिनन्दन किया गया। सत्संग सुनाते हुए आध्यात्मिक सन्त बाबा पंकज महाराज ने कहा कि मनुष्य शरीर देव-दुर्लभ शरीर है। जन्मों-जन्मों की त्याग, तपस्या, दान-पुण्य, सेवा का फल एकत्रित होने पर मिलता है। यह शरीर केवल भगवान के भजन के लिये दिया गया है। उन्होंने कहा कि परमात्मा को जीते जी पाया जा सकता है। उसके पास जाने का रास्ता दोनों आँखों के मध्य भाग से गया है। जीवन में भगवान न मिला तो मरने के बाद कदापि नहीं मिलेगा। भगवान का भजन करने के लिए शाकाहारी, सदाचारी और नशामुक्त होना अनिवार्य है।

उन्होंने कहा कि यह मृत्यु लोक कर्म प्रधान देश है। कर्मों का विज्ञान बहुत बारीक है। बुद्धि से समझने के बहुत परे है। कर्म का अदला-बदला सबको देना पड़ता है। राम और कृष्ण जैसे अवतारी नहीं बच पाये तो हम कैसे बचेंगे। सभी लोगों ने अपनी माँ की गर्भ में असहनीय पीड़ा झेलते हुए भगवान के भजन का जो वादा किया है, उसको भूल गये हैं। सबने यह प्रार्थना की है कि ‘‘अब प्रभु कृपा करौ यहि भॅाती, सब तजि भजन करब दिन राती।’’ सन्त महात्मा यही वादा याद कराने और परमात्मा की भक्ति करने का मार्ग बताने आते हैं। जीवन श्वॉसों की पूँजी के रूप में मिला है। यदि श्वॉसों को जल्दी-जल्दी खर्च कर दोगे तो अल्पायु हो जाओगे। साधना, अभ्यास में, चिन्तन में श्वॉसें कम खर्च होती हैं, इससे अभ्यासी भजनानन्दी दीर्घायु हो जाते हैं।

बाबा जयगुरुदेव के कृपापात्र प्रिय शिष्य ने कहा कि मौत की पीड़ा बड़ी भयावह और कष्टदायी होती है। सहजोबाई ने लिखा है कि – ‘‘सहजो मौत आइयॉ, अंग-अंग दिया तोड़। हिया जरै छाती फटै, उठै पीर घनघोर।’’ गोस्वामी जी ने कहा है कि ‘‘जन्मत मरत दुसह दुख होई,’’ और ‘‘लौह के खम्भ तपत के मॉहीं। जहाँ जीव को ले चिपटाहीं। ‘‘यह सब महात्माओं ने अपनी आँखों से देखकर वर्णन किया है। कर्माें का हिसाब होने के बाद चार खानों, चौरासी लाख योनियों में यही जीवात्मा डाल दी जाती है। बुरे कर्माें के कारण नर्काें की भयंकर यातनायें झेलनी पड़ती हैं। महात्मा इन्हीं तकलीफों से बचाने की दवा लेकर आते हैं।

उन्होंने चरित्र को मानव धर्म की सबसे बड़ी पूँजी बताया। शाकाहार सदाचार, नशामुक्ति अपनाने की अपील की। मानव धर्म, मानव कर्म, मानव प्रेम, मानव सेवा, मानवीय गुणों की स्थापना पर जोर दिया। चरित्र उत्थान करना और अच्छे समाज का निर्माण करना वर्तमान की माँग बताया। आगामी 8 दिसम्बर से 12 दिसम्बर 2024 तक दादा गुरु जी महाराज के 76 वें पावन भण्डारे में मथुरा जयगुरुदेव आश्रम पधारने का निमंत्रण दिया। इस अवसर पर रमाकान्त चौहान, भू स्वामी बच्छराज, लेखराज, पंचराम, राजेश, स्वयंवर, ग्राम प्रधान राजन सिंह, अमरेश पाल, राजेश, सहयोगी संगत के घूरन प्रसाद, भगवानदास सहित संस्था के अनेक पदाधिकारी, प्रबन्ध समिति व सामान्य सभा के सदस्य उपस्थित रहे। संवाददाता सुनील कुमार यादव

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