राय अहमद खाँ खरल (पंवार), अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने वाले वो 72 साला बुज़ुर्ग, जिन्हें नमाज़ पढ़ते हुए शहीद कर दिया गया.

राय अहमद खाँ खरल (पंवार), अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने वाले वो 72 साला बुज़ुर्ग, जिन्हें नमाज़ पढ़ते हुए शहीद कर दिया गया.

 

राय अहमद खरल का तअल्लुक़ पंजाब के इलाके संदल बार के झमरा गांव के ज़मींदार राजपूत घराने से था। ये घराना खरल राजपूतों का सरदार भी था।

 

बताया जाता है, राय साहब बचपन से बहादुर थे, वो अपनी जवानी के दिनों में सिख हमलों के खिलाफ भी लड़े और आपने बुज़ुर्गी में अंग्रज़ों के खिलाफ जंग ए आज़ादी में लड़ते हुए 1857 में शाहदत पाई।

 

1857 का साल हिन्दोस्तान की तारीख में बहुत अहम था, कंपनी राज के खिलाफ बगावत छिड़ गई थी और कंपनी के सिपाही अँगरेज़ फ़ौज से बगावत करने लगे। इसी कड़ी में अंग्रेजों को अपनी फ़ौज के लिए सिपाहियों की ज़रूरत पड़ने लगी। अँगरेज़ फ़ौज की कमी पूरी करने के लिये पंजाब के क़बीलों से अपने साथ मिलने की दरख़्वास्त करने लगे अँगरेज़ क़बीलों को तमाम तर जागीर और ज़मीनों का लालच दे रहे थे।

 

इसी पेशकश के साथ अंग्रेज़ “खरल सरदार राय अहमद खाँ” के पास पहुंचे। राय अहमद खाँ को अंग्रेजों से सख्त नफ़रत थी उन्होंने अंग्रेज़ों की इस पेशकश को ठुकरा दिया। दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह ज़फर को अपनी हिमायत की पेशकश के बाद राय साहब ने अपने क़बीले के साथ अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ एलान ए जंग कर दिया।

 

इस एलान को अंग्रेजों में हल्के में नहीं लिया और खरलो को दबाने की हर मुमकिन कोशिश की तैयारी करने लगे। खरलो की हिम्मत देख कर साहिवाल और गोगेरा के दीगर कबाईल ने भी अंग्रेज़ों को लगाने देने से मना कर दिया। और अपनी सदारत राय अहमद खरल को सौंप दी।

 

इसके बाद अँगरेज़ हुकूमत ने साहिवाल के कमिश्नर बर्कले को ये इंक़लाब दबाने और क़बीलों से लगान वसूलने की ज़िम्मेदारी सौंप दी। जिसके बाद बर्कले ने बड़ी तादाद में बागियों को गिरफ्तार कर गोगेरा जेल में बंद कर दिया। बर्कले की इस हिमाकत के बाद राय अहमद खरल गुस्से में आ गए और एक रोज़ रात के अंधेरे में

Related posts

Leave a Comment