*स्लग- बट सावित्री पूजन के लिए सुबह से सुहागिनों की लगी लंबी वट वृक्ष के नीचे भीड़।*

*स्लग- बट सावित्री पूजन के लिए सुबह से सुहागिनों की लगी लंबी वट वृक्ष के नीचे भीड़।*

जयप्रकाश वर्मा
सोनभद्र।

*एकर-*

*वीओ* आज के दिन सुहागिन स्त्रियां वट सावित्री पूजन के लिए सुबह से स्नानादि से निर्जला निवृत्त होकर व्रत रखकर वटवृक्ष की धूप दीप नैवेद्य के साथ पूजन करते हुए वट वृक्ष पर रक्षा सूत्र बांध कर 7 बार फेरे करती हैं। और उसके उपरांत ब्राह्मण पुरोहितों से सावित्री सत्यवान की कथा सुन अपने पति की लंबी उम्र करने की वट वृक्ष से कामना करती हैं आपको बता दें आज वट सावित्री पर्व पूरे गांव शहर जनपद प्रदेश एवं देश में श्रद्धा और हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है तो वही सोनभद्र दुद्धी में भी शहर हो या देहात जगह-जगह वटवृक्ष का सुहागिन स्त्रियां पूजन अर्चन कर रही हैं। कथा सुनाते वक्त पुरोहितों ने बताया कि इस दिन वट यानी बरगद के वृक्ष की पूजा का खास महत्व है यह व्रत स्त्रियों के लिए दुख:प्रणाशक सौभाग्य वर्धक, पापा हरक और धन धन सुख संपन्न का समृद्धि प्रदान करने वाला व्रत होता है जो संपूर्ण देश में सुहागिन महिलाओं के द्वारा व्रत रखने की परंपरा है ।।

Vo: कथा में बताते वक्त पुरोहितों ने बताया कि भद्र देश के एक राजा थे जिनको 18 वर्ष के कड़ी तपस्या के बाद सावित्री देवी ने प्रकट होकर वरदान दिया कि उन्हें एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी जिन की कृपा से एक कन्या पैदा हुई जिनका नाम सावित्री रखा गया यह कन्या बड़ी होकर बड़ी खोकर रूपवान तेजवान बनी जिसके लिए योग्य वर पिता के द्वारा काफी खोजबीन की गई लेकिन नहीं मिला तो पिता ने स्वयं सावित्री को वर तलाशने हेतु कहां सावित्री तपोवन में भटकने लगी वहां साल देश के राजा धुममत्सेन रहते थे जिनका राज का छीन लिया गया था उनके पुत्र सत्यवान को सावित्री ने देखकर उन्हें पति के रूप में वर्णन किया ऋषि राज नारद को जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने सावित्री के पिता अश्वपति से जाकर यह बात बताई और कहने लगे सत्यवान गुणवान धर्मात्मा है और बलवान भी है ।पर उसकी आयु अल्प आयु है जो 1 वर्ष बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा जिसे सुन सावित्री के पिता ने अपनी पुत्री से दूसरा वर्ग तलाशने की बात कही जिस पर सावित्री ने पिता को उत्तर देते हुए कहा पिता जी आर्य कन्याए अपने पति का एक बारी वरण करती हैं राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार प्रतिज्ञा कराते हैं एवं कन्यादान एक ही बार होता है इस हट पर सावित्री की विवाह सत्यवान से हुई धीरे-धीरे समय बीता गया सावित्री अपने सास-ससुर की खूब सेवा करने लगी जो आंख से अंधे थे पति के मृत्यु के दिन जैसे नजदीक आने लगे वैसे वैसे सावित्री को आभास होने लगा पति के मृत्यु के उपरांत तीन दिवस पूर्व ही सावित्री ने उपवास शुरू कर दिया और पितरों की पूजन करने लगी सत्यवान प्रतिदिन जंगलों में लकड़ी काटने जाया करते थे ज्यो ही पेड़ के ऊपर चढ़कर पेड़ काटने के लिए सत्यवान कुल्हाड़ी चलाते है ।तो उनके सर में दर्द होने लगता है ।और वह नीचे उतरकर सावित्री के गोद में सिर रखकर सोने लगते है तभी पत्नी सावित्री को आभास होता है कि उनके पति की मृत्यु हो गई है और यमराज उनके पति के प्राण ले जाने लगे तो सावित्री उनके पीछे पीछे चल पड़े सावित्री को यमराज ने लाख समझाने का प्रयत्न किया लेकिन वह अपने पतिव्रता धर्म पर बनी रहे सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख यमराज ने सावित्री से कहा हे देवी तुम धन्य हो और उन्होंने वरदान मांगने को कहा सावित्री ने कहा मेरे सास-ससुर बनवासी और अंधे हैं उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें यमराज ने उन्हें यह वरदान दे दिया लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे पीछे चलती रहे फिर यमराज ने उन्हें वापस जाने को कहा लेकिन वह नहीं मानी दूसरी बार वरदान उन्होंने दिया जिसमें सावित्री ने बोला हमारे सास ससुर का राज्य छिन गया है उसे वापस करने की कृपा करें यह भी वरदान उन्हें प्राप्त हो गया फिर भी सावित्री अपने पति के पीछे चलती रहे जिस पर यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने 100 संतानों और सौभाग्यवती का वरदान मांगा जिसे यमराज ने सावित्री को दे दिया सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े और यमराज अंतर्ध्यान हो गए और सावित्री उसी वक्त ब्रिज के पास आ गई जहां उसके पति का मित्र शरीर पडा हुआ था सत्यवान जीवंत हो गए और दोनों खुशी-खुशी राज की ओर चल पड़े।।

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