अयोध्या उत्तर प्रदेश
*सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा हुई संपन्न विशाल भंडारा का हुआ आयोजन श्रद्धालुओं ने महा प्रसाद ग्रहण किया कथा के सातवें दिन कथा व्यास ने श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के विवाह का प्रसंग सुनाया*
अयोध्या के आचार्य राजित राम तिवारी (अनुरागी) के मधुर वाणी से सात दिनों से चल रही। श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन कथा व्यास ने भगवान श्रीकृष्ण के विवाह का प्रसंग सुनाया। कथा व्यास आचार्य राजित राम तिवारी (अनुरागी) ने बताया कि विदर्भ के राजा भीष्मक के घर रुक्मिणी का जन्म हुआ। वह बाल अवस्था से भगवान श्रीकृष्ण को सच्चे हृदय से पति के रूप में चाहती थी। लेकिन उसका भाई रुक्मिणी का विवाह गोपल राजा शिशुपाल के साथ कराना चाहता था। रुक्मिणी ने अपने भाई की इच्छा जानी तो उसे बड़ा दुख हुआ। शुद्धमति के अंतपुर में सुदेव नामक ब्राह्मण आता-जाता था। रुक्मिणी ने उस ब्राह्मण से कहा कि वे श्रीकृष्ण से विवाह करना चाहती हैं। कथा व्यास आचार्य राजित राम तिवारी ने बताया कि पार्वती के पूजन के लिए जब रुक्मिणी आई, उसी समय प्रभु श्रीकृष्ण रुक्मिणी का हरण कर ले गए। अतः रुक्मिणी के पिता ने रीति रिवाज के साथ दोनों का विवाह कर दिया। कथा व्यास आचार्य राजित राम तिवारी ने झांकी के माध्यम से विधि विधान से श्री कृष्ण रुक्मिणी का विवाह कराया। श्रीमद्भागवत कथा के समापन अवसर पर हवन व भंडारे का आयोजन किया गया। भंडारा देर तक चलता रहा। सैकडों श्रद्धालुओं ने महा प्रसाद ग्रहण किया। पंजाब लुधियाना ग्यासपुरा अंबेडकर नगर गली नंबर 14 में एक सप्ताह से चल रही श्रीमद्भागवत कथा के समापन अवसर पर आयोजित हवन व पूजन के बाद भंडारे का आयोजन किया गया। कथा व्यास आचार्य राजित राम तिवारी (अनुरागी) ने सात दिन तक चली कथा में भक्तों को श्रीमद्भागवत कथा की महिमा बताई। कथा व्यास आचार्य राजित राम तिवारी ने लोगों से भक्ति मार्ग से जुड़ने और सत्कर्म करने को कहा। कथा व्यास आचार्य राजित राम तिवारी ने कहा कि हवन-यज्ञ से वातावरण एवं वायुमंडल शुद्ध होने के साथ-साथ व्यक्ति को आत्मिक बल मिलता है। व्यक्ति में धार्मिक आस्था जागृत होती है। दुर्गुणों की बजाय सद्गुणों के द्वार खुलते हैं। यज्ञ से देवता प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करते हैं। आचार्य राजित राम तिवारी ने बताया कि भागवत कथा के श्रवण से व्यक्ति भव सागर से पार हो जाता है। श्रीमद्भागवत से जीव में भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य के भाव उत्पन्न होते हैं। इसके श्रवण मात्र से व्यक्ति के पाप पुण्य में बदल जाते हैं। विचारों में बदलाव होने पर व्यक्ति के आचरण में भी स्वयं बदलाव हो जाता है। उन्होंने कहा कि प्रसाद तीन अक्षर से मिलकर बना है। पहला प्र का अर्थ प्रभु, दूसरा सा का अर्थ साक्षात व तीसरा द का अर्थ होता है दर्शन। जिसे हम सब प्रसाद कहते हैं। हर कथा या अनुष्ठान का तत्वसार होता है जो मन बुद्धि व चित को निर्मल कर देता है। मनुष्य शरीर भी भगवान का दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ प्रसाद है। जीवन में प्रसाद का अपमान करने से भगवान का ही अपमान होता है। भगवान को लगाए गए भोग का बचा हुआ शेष भाग मनुष्यों के लिए प्रसाद बन जाता है।
कथा समापन के बाद विधि विधान से पूजा करवाई। हवन और विशाल भंडारा कराया गया। पूजन के बाद शुरू हुआ भंडारा देर रात तक चलता रहा।