भ्र्ष्ट तंत्र के खिलाफ सड़क पर उतरे वकील साहब !
श्रावस्ती जिले के इकौना तहसील के सामने नारेबाजी करते ये सब अधिवक्ता समुदाय के लोग हैं। समाज को न्याय दिलाने की जिम्मा इन्हीं पर है, मगर जब हर तरफ गोलमाल हो और कदम – कदम पर व्यवस्था को चलाने वाले पैसे की चाहत रखते हों तो ‘बार’ का बेंच के साथ समन्वय बैठ पाना मुश्किल हो जाता है। इकौना तहसील में लगभग आठ माह यही चल रहा है। बिना पैसे के कोई काम नहीं हो रहा है। योगी व मोदी सरकार चाहे जितना सुशासन और भ्र्ष्टाचार मुक्त शासन की कल्पना कर रही हो, लेकिन इस तहसील में वही होता है, जो एसडीएम साहब चाहते हैं। हो भी क्यों न! एसडीएम साहब राजनेताओं के दुलारे माने जाते हैं। राजनीतिक सरपरस्ती के कारण बड़े अधिकारी भी आकंठ भ्र्ष्टाचार में डूबे एसडीएम के बचाव के लिए धृतराष्ट्र बने हुए हैं। तहसील अधिवक्ता संघ के महामंत्री शिवपाल मिश्रा व पूर्व महामंत्री श्रीधर द्विवेदी कहते हैं कि एसडीएम को हटाने की मांग को लेकर यह हम लोगो का कोई नया आंदोलन नहीं है। इससे पहले भी दो बार इनके अदालत का बहिष्कार हो चुका है। तीसरी बार आक्रोश की आग सड़क पर भड़की है। प्रदर्शन और नारेबाजी कर वकीलों ने विरोध जताया। एसडीएम को हटाने की मांग को लेकर 11 दिनों अधिवक्ता आंदोलन की राह पर है। वैसे तो लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का हक हासिल है। भ्र्ष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने के लिए तमाम सेल भी गठित हैं। सरकार भ्र्ष्टाचार में लिप्त बड़े – बड़े अफसरान को निलंबित कर चुकी है। अपराध व भ्र्ष्टाचार में संलिप्त लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। बुलडोजर चल रहे हैं, तो फिर अपनी प्रशासनिक शक्ति का दुरुपयोग कर आम जनता, वादकारियों को ही नहीं अधिवक्ताओं के अधिकार व सरोकार से खिलवाड़ करने वाले भ्रष्ट अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है। लोग यह भी मानते हैं कि भ्र्ष्टाचार मुक्त प्रशासन के लिए अधिवक्ता संघ इकौना का आंदोलन बहुत ही सराहनीय है। अपनी सियासी पकड़ व धौंस के बूते तहसील में वर्चस्व बनाने वाले इस अधिकारी के विरोध में अधिवक्ताओं के आक्रोश की अग्नि से माहौल गरम है। सेवा निवृत्ति के कगार पर चल रहे इस अधिकारी की कार्य प्रणाली जग जाहिर है। तहसील इकौना की सीमा क्षेत्र के अंतर्गत शरीफ लोगों को कब बेइज्जत कर दिया जाय , कब किसको लेखपाल व कानूनगो भगा दे, कब किसकी जमीन पर कब्जा करवा दिया जाय कुछ कहा नहीं जा सकता। तमाम उदाहरण भी सामने आए हैं। प्रकीर्ण प्रार्थना पत्रों के निस्तारण में स्वामित्व व कब्जा प्रमाणित करना भी इनका शगल बन गया है। तहसील अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष दिलीप शर्मा का कहना है कि इनका सिर्फ स्थानांतरण समस्या का हल नहीं है बल्कि इन्हें स्थाई रूप से सेवा निवृत्त कराने के लिए शासन को पत्र लिखा जाएगा , क्योंकि लोक सेवक की भ्रष्ट करतूतों से शासन की छवि धूमिल हो रही है। अब सवाल यह कि आंदोलन का रास्ता अख्तियार किए अधिवक्ताओं के आरोपों पर कौन मुहर लगाए। व्यवस्था पर तंज करती प्रदीप चौबे की कविता- हर तरफ गोलमाल है साहब, आपका क्या ख्याल है .. सटीक बैठती है। तभी तो लाइलाज भ्र्ष्ट तंत्र में लेखपाल से लेकर एसडीएम तक बेअन्दाज हैं। बशीर बद्र का एक शेर और बात खत्म-अगर फुरसत मिले तो पानी की* *तहरीरों को पढ़ लेना,*
*हर इक दरिया हजारों साल का* *अफसाना लिखता है।*कभी मैं अपने हाथ की लकीरों से नहीं उलझा,*मुझे मालूम है कि किस्मत का लिखा भी बदलता है।।* रिपोर्ट- विजय द्विवेदी श्रावस्ती।