सीएचसी कर्नलगंज के अधीक्षक ने खुद की गर्दन फंसते देख रामू सिंह पर दर्ज कराई एफआईआर
(आमजनमानस में काफी चर्चा का विषय, कहीं ऐसा तो नहीं कि अपनी गर्दन फंसती देख खुद को बचाने का तरीका अपनाकर दर्ज कराया गया है यह मुकदमा)
कर्नलगंज, गोण्डा । स्थानीय तहसील मुख्यालय स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र कर्नलगंज के अधीक्षक डॉ० सुरेश चन्द्र द्वारा जेल में निरुद्ध दुष्कर्म के आरोपी उपेन्द्र प्रताप सिंह उर्फ रामू सिंह के खिलाफ दर्ज कराया गया मामला इन दिनों आमजनमानस में काफी चर्चा का विषय बना हुआ है। इस तरह दोस्ती दुश्मनी में बदल जायेगी शायद यह किसी ने भी नहीं सोंचा होगा। मालूम हो करीब डेढ़ माह से ज्यादा समय बीत जाने के बाद मुंडेरवा निवासी उपेंद्र प्रताप सिंह उर्फ रामू सिंह के विरुद्ध अधीक्षक डॉ० सुरेश चंद्र द्वारा कर्नलगंज कोतवाली में डराने धमकाने का और जबरदस्ती दवा लिखवाने का मामला दर्ज कराया गया है। दर्ज प्राथमिकी में कहा गया है कि वह उन्हें पहले से जानते हैं। कोतवाली पुलिस ने बीते 9 अप्रैल 2022 को रामू सिंह के विरुद्ध दुष्कर्म का मामला दर्ज किया था जिसके बाद उनकी तलाश में 14 अप्रैल को बड़ी संख्या में कोतवाली पुलिस ने उनके घर पर दबिश देकर उन्हें पकड़ने का प्रयास किया था। गौरतलब यह है कि जेल भेजे गये आरोपी रामू सिंह और डॉक्टर सुरेश चंद्रा के आपस में क्या संबंध है ? यह किसी से छुपा नहीं है। जो पहले से ही सर्वविदित है। डॉ० सुरेश चन्द्र ने दर्ज एफआइआर में कहा है कि 9 अप्रैल को रामू सिंह उनके पास दवा लेने आए उनके नाक से खून बह रहा था, वापस 10 तारीख को फिर आये और हायर सेंटर के लिए रेफर करने को दबाव बनाने लगे। सूत्रों की माने तो रामू सिंह पर मुकदमा दर्ज होने के बाद डॉक्टर चंद्रा से भी पुलिस ने पूछताछ की थी पर उस समय ऐसे डराने धमकाने जैसे तथ्य सामने नहीं आये और न ही कोई मामला दर्ज कराया गया। क्या कारण थे जो डॉक्टर सुरेश चंद्र ने उस समय प्राथमिकी नहीं दर्ज कराई और अब घटना के करीब डेढ़ माह से अधिक बीत जाने के बाद तथा रामू सिंह की गिरफ्तारी के बारह दिन बाद वह एकाएक भयमुक्त होने का अहसास कर उन्होंने प्राथमिकी दर्ज कराई। आमजन में यह चर्चा भी अब जोरों पर है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि अपनी गर्दन फंसती देख अपने आप को बचाने का तरीका अपनाकर यह मुकदमा दर्ज कराया गया हो। सवाल यह उठता है कि कहीं इसके पीछे कोई गेम तो नहीं चल रहा है। फिलहाल जो भी हो अब आमजनमानस की निगाहें आगे की कार्रवाई के लिए प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों पर टिकी हुई हैं। डॉ० चंद्रा का विवादों से पुराना नाता माना रहा है। अपनी कार्यशैली को लेकर विवादों व सुर्खियों में रहने वाले डॉ० सुरेश चन्द्र का यह पहला मामला नहीं है। इसके पहले भी इनके द्वारा एक स्थानीय भाजपा नेता व उनके अध्ययनरत सुपुत्र पर भी मुकदमा लिखवाया जा चुका है। आमजन को ऐसी अव्यवस्थाओं से कब मुक्ति मिलेगी और उन्हें सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का कब समुचित लाभ मिल सकेगा आज कल यह बात भी व्यापक रूप से जनचर्चा में है। रेफरल यूनिट का दर्जा प्राप्त कर्नलगंज सीएचसी आये दिन अपनी कार्यशैली के चलते विवादों में रही है। कभी अधीक्षक द्वारा निजी प्रैक्टिस का मामला तो कभी अस्पताल में जलाई गई दवाएं, तो कभी बलरामपुर के जज के नंबर पर वैक्सीनेशन के नाम पर भेजी गई ओटीपी का मामला, तो कभी नर्स द्वारा बच्चा बदले जाने की घटना तो कभी प्रसूता के इलाज में की गई लापरवाही के चलते नवजात की मौत और कोरोना वैक्सीनेशन के फर्जी टीकाकरण सहित अस्पताल में दलाली व मरीजों के शोषण का प्रकरण समाचार पत्रों की सुर्खियों में रहा। इसी तरह कई ऐसी घटनाएं व कई ऐसे कारनामे हैं जिससे सीएचसी धब्बा मुक्त होने में असफल रही। वहीं एकमात्र अधीक्षक के कार्यकाल के दौरान ही इस प्रकार की घटनाएं होना और उनके ऊपर कार्यवाही ना होना भी जनचर्चा का हिस्सा है। जबकि जिले के एक कद्दावर जनप्रतिनिधि द्वारा अधीक्षक की कार्यशैली की शिकायत शासन प्रशासन से की गई पर परिणाम ढाक के तीन पात ही रहा, बाद में सब गोलमाल हो गया। कोई ठोस कार्रवाई ना होना योगी आदित्यनाथ के जीरो भ्रष्टाचार टॉलरेंस की नीति पर बट्टा साबित हुआ। दुष्कर्म के मामले में जेल भेजे गये आरोपी और अधीक्षक के व्यक्तिगत संबंधों के बारे में लोगों में तो पहले से ही चर्चाएँ आम रही हैं जिसे उन्होंने अब अपनी प्राथमिकी में भी बड़ी साफगोई से स्वीकार किया है तथा उनके फोन पर लोगों के इलाज करने की भी बात स्वीकारी है। जेल में निरुद्ध रामू सिंह ना तो कोई जनप्रतिनिधि थे और ना ही कोई अधिकारी फिर भी ऐसे लोगों के फोन पर लोगों का इलाज किया जाना आपसी संबंधों की प्रगाढ़ता का ही स्पष्ट संकेत माना जा रहा है। बड़ा यक्ष प्रश्न यह है कि जिन बातों का उल्लेख उन्होंने अपनी प्राथमिकी में किया है वह जनता के गले नहीं उतर रही और लोग तरह-तरह की चर्चाएं कर रहे हैं।उनकी तैनाती 2016 में हुई है और तब से अब तक वे यहीं पर नियुक्त हैं और इतने विवादों के बाद भी एक ही जगह तैनाती होने का आखिर कारण क्या है ? यह बात आज भी आमजनमानस की समझ से परे है।